Bajra Ergot Disease in Hindi बाजरा का अरगट रोग

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बाजरा (Pennisetum glaucum) भारत और अफ्रीका में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण अनाज फसल है। यह विशेष रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जाता है, जहाँ अन्य फसलें उगाना कठिन होता है। यह किसानों के लिए पोषण और आय का एक प्रमुख स्रोत है। हालाँकि, कई रोग इस फसल की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। फसल को प्रभावित करने वाली बीमारियों में अर्गट, जड़ सड़न, पत्ती धब्बा, और ब्लास्ट प्रमुख हैं। बाजरा की बीमारियाँ न केवल उत्पादन को कम करती हैं, बल्कि पौधों की वृद्धि और अनाज की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती हैं। समय पर पहचान और उचित प्रबंधन से इन बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। इस लेख में हम बाजरे का अर्गट रोग Bajra Ergot Disease in Hindi कि विस्तार में चर्चा करेंगे।

बाजरे का अर्गट (Ergot of Bajra) क्या है?

बाजरे का अर्गट एक फंगस (कवक) के कारण होता है, जिसका नाम है Claviceps fusiformis। यह फंगस बाजरे के दानों पर हमला करता है और स्वस्थ दानों को काले, सख्त ढाँचे (sclerotia या ergot bodies) में बदल देता है। ये sclerotia जहरीले होते हैं और इन्हें खाने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

अर्गट (Ergot) क्यों हानिकारक है?

फंगस द्वारा बनाए गए sclerotia में जहरीले एल्कलॉइड (alkaloids) होते हैं। यदि मनुष्य या जानवर संक्रमित बाजरा खाते हैं, तो इससे अर्गटिज्म (ergotism) नामक बीमारी हो सकती है। इसके लक्षणों में उल्टी, चक्कर आना और यहाँ तक कि लंबे समय तक नर्व डैमेज (nerve damage) भी शामिल हैं। गंभीर मामलों में यह जानलेवा भी हो सकता है।


अर्गट रोग का कारण

बाजरे में अर्गट रोग यह Claviceps fusiformis नामक फंगस के कारण होता है। यह कवक बाजरे के दानों पर हमला करता है और स्वस्थ दानों को काले, सख्त ढाँचे (स्क्लेरोशियम या ergot bodies) में बदल देता है। ये स्क्लेरोशियम जहरीले होते हैं और इनका सेवन करने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।


अर्गट रोग के लक्षण

  1. मधु रस का स्राव – प्रारंभिक संक्रमण के दौरान संक्रमित फूलों से चिपचिपा, मधु जैसा तरल पदार्थ निकलता है।
  2. फूलों में स्क्लेरोशियम का बनना – संक्रमित फूलों में बीज के स्थान पर भूरे-काले रंग के छोटे कठोर स्क्लेरोशियम बन जाते हैं।
  3. बीज की हानि – संक्रमित बालियों में स्वस्थ बीजों की संख्या कम हो जाती है, जिससे उपज में भारी कमी आती है।
  4. विषाक्तता (Ergotism) – संक्रमित अनाज खाने से मनुष्यों और पशुओं में उल्टी, दस्त और तंत्रिका तंत्र में विकार हो सकते हैं।

रोग चक्र (Disease Cycle)

  1. प्रारंभिक संक्रमण: मिट्टी में गिरे स्क्लेरोशियम अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित होते हैं और छोटे फलनकाय (perithecia) उत्पन्न करते हैं।
  2. स्पोर उत्पादन: परिपक्व होने पर ये फलनकाय एसकोस्पोर्स (ascospores) छोड़ते हैं, जो हवा या कीड़ों के माध्यम से स्वस्थ फूलों तक पहुँचते हैं।
  3. संक्रमण एवं वृद्धि: फूलों में प्रवेश करने के बाद कवक तेजी से बढ़ता है और एक चिपचिपा मधु जैसा पदार्थ छोड़ता है।
  4. स्क्लेरोशियम निर्माण: धीरे-धीरे संक्रमित फूलों में बीज के स्थान पर स्क्लेरोशियम बन जाते हैं, जो बाद में गिरकर नए संक्रमण का स्रोत बनते हैं।

प्रबंधन एवं नियंत्रण (Management & Control)

1. कृषि विधियाँ (Cultural Practices)

  • प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें, जो इस रोग के प्रति सहनशील हों।
  • स्वस्थ और प्रमाणित बीजों का चयन करें।
  • फसल चक्र अपनाकर मिट्टी में स्क्लेरोशियम के जमाव को कम करें।
  • संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें।

2. रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control)

  • फूल आने के समय प्रोपिकोनाज़ोल (Propiconazole) 0.1% या मेंकोज़ेब (Mancozeb) 0.2% का छिड़काव करें।
  • कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) 50WP का बीजोपचार करने से रोग के फैलाव को कम किया जा सकता है।

3. जैविक नियंत्रण (Biological Control)

  • Trichoderma harzianum जैसे जैविक कवकनाशी का प्रयोग किया जा सकता है।
  • प्राकृतिक शत्रुओं (natural enemies) को बढ़ावा देकर रोग की रोकथाम की जा सकती है।

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