ग्राम स्टेनिंग Gram Staining Procedure in Hindi

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ग्राम स्टेनिंग यह  माइक्रोबायोलॉजी में इस्तेमाल कि जानेवाली  एक बहुत ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय तकनीक है। यह तकनीक बैक्टीरिया की कोशिका दीवार (cell wall – सेल वॉल)  को जांचने का तरीका है। ग्राम स्टेनिंग प्रोसिजर का इस्तेमाल कर बैक्टीरिया को उनकी सेल वॉल की विशेषताओं के आधार पर दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है – ग्राम पॉजिटिव और ग्राम नेगेटिव। Gram Staining method इस तकनीक का उपयोग बैक्टीरिया की पहचान और वर्गीकरण में किया जाता है, जिससे उनके प्रकार और विशेषताओं को समझने में मदद मिलती है।

ग्राम स्टेनिंग की खोज (Gram Staining Discovery)

Gram Staining ग्राम स्टेनिंग तकनीक को सर्वप्रथम विकसित करने वाले वैज्ञानिक थे हांस क्रिश्चियन ग्राम (Hans Christian Gram), जो एक डेनिश वैज्ञानिक थे। उन्होंने 1884 में इस तकनीक की खोज की, जिससे बैक्टीरिया की पहचान और वर्गीकरण करने का एक नया तरीका सामने आया। इस योगदान के लिए उन्हें श्रेय प्राप्त है, और इसलिए यह तकनीक उनके नाम से ही जानी जाती है।

ग्राम स्टेनिंग रिएजेंट्स (Gram Staining Reagents in hindi):

इस विधि में, बैक्टीरिया के फिक्स्ड स्मियर को निम्नलिखित क्रम में रिएजेंट्स से उपचारित किया जाता है:

  1. Crystal Violet क्रिस्टल वायलेट (प्राथमिक रंग): सभी बैक्टीरिया कोशिकाओं को प्रारंभ में रंग देता है।
  2. Iodine आयोडीन (मॉर्डेंट): क्रिस्टल वायलेट के साथ मिलकर एक स्थायी जटिल बनाता है।
  3. 95 % Alcohol/ Acetone अल्कोहॉल/एसीटोन (डीकलराइजिंग एजेंट): ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया से प्राथमिक रंग को हटा देता है।
  4. Safranin of Basic Fuchsine बेसिक फ्यूशिन/सफरानिन (काउंटर स्टेन): डीकलराइज किए गए ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया को लाल या गुलाबी रंग में रंगता है।

ऐसे बॅक्टेरिया जो प्राथमिक रंग (Primary Stain) का रंग बनाए रखते हैं, उन्हें ग्राम पॉजिटिव कहा जाता है। और ऐसे बॅक्टेरिया जो डीकलराइज होने पर प्राथमिक रंग नहीं बनाए रखते और काउंटर स्टेन का रंग ले लेते हैं, उन्हें ग्राम नेगेटिव कहा जाता है।

मॉर्डेंट्स क्या होते है ? What is a mordant in Hindi?


मॉर्डेंट्स डाई (dye) नहीं होते। ये जैविक नमूनों (biological specimens) की डाई के प्रति आकर्षण (affinity) को बढ़ाने में सहायक होते हैं। कुछ रंग बिना मॉर्डेंट के कोशिकाओं या उनके घटकों (components) को रंगने में सक्षम नहीं होते। मॉर्डेंट कोशिका या उसके घटकों से जुड़कर रंग के साथ मिलकर एक अघुलनशील रंगीन जटिल संरचना (insoluble dye complex) बनाता है।

ग्राम्स आयोडीन कार्य:

ग्राम आयोडीन Reagent ग्राम स्टेनिंग प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह क्रिस्टल वायलेट के साथ मिलकर क्रिस्टल वायलेट-आयोडीन कॉम्प्लेक्स बनाता है, जो स्थिर और बड़ा होता है। यह कॉम्प्लेक्स ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया की सेल वॉल्स में क्रिस्टल वायलेट को फंसाकर एक गहरा और स्थायी रंग बनाता है। आयोडीन डाई को स्थिर करता है, जिससे डीकलराइजेशन के दौरान यह बैक्टीरिया से नहीं निकलता।

ग्राम स्टेनिंग प्रक्रिया (Gram Staining Procedure in hindi)

स्लाइड पर बैक्टीरियल स्मीयर बनाना:

ग्राम स्टेनिंग प्रक्रिया में सबसे पहले हमको कांच कि स्लाइड पर बैक्टीरियल स्मीयर बनाना होता है | एक
साफ और ग्रीस-मुक्त स्लाइड पर एक स्टीराइल वायरलूप से एक लूपफुल बैक्टीरियल कल्चर लें। स्लाइड पर स्मीयर बनाएं, इसे हवा से सुखाएं, और फिर स्मीयर को हीट फिक्स करें (स्लाइड को हल्के से बर्नर की लपटों से 2-3 बार पास करें)।

ग्राम स्टेनिंग प्रोसिजर में मुख्य रूप से चार चरण होते हैं:

१. क्रिस्टल वायलेट से रंगना (Crystal Violet Staining):

  • स्लाइड पर मौजूद स्मीयर पर क्रिस्टल वायलेट डाला जाता है, जो एक बेसिक डाई (Basic dye) होता है।
  • स्मीयर पर क्रिस्टल वायलेट डाले और 1 मिनट तक इंतजार करें। फिर स्लाइड को हल्के पानी की धार से धोएं।
  • इस चरण में दोनों ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया इस रंग को लेते हैं और बैंगनी रंग में दिखाई देते हैं।

२. आयोडीन से रंगना (Iodine Treatment):

अब स्मीयर पर आयोडीन डाला जाता है | आयोडीन एक मॉर्डेंट (mordant) के रूप में काम करता है, जो क्रिस्टल वायलेट के साथ मिलकर एक जटिल बना लेता है, जिससे रंग बैक्टीरिया की कोशिकाओं में स्थिर हो जाता है।

  • ग्राम आयोडीन सोल्यूशन डालो और 1 मिनट तक इंतजार करे।एक मिनट बाद हल्की पानी की धार में स्लाइड को धोएं।

इस चरण में, दोनों ग्राम पॉजिटिव और ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया गहरे बैंगनी (dark violet) रंग के दिखाई देते हैं।

3. डीकलराइजेशन (Decolorization using 95% Ethanol)

इसके बाद, स्लाइड स्लाइड पर मौजूद स्मीयर को 95 % एथिल अल्कोहल या एसीटोन-एथिल अल्कोहल सॉल्यूशन से डीकलराइज किया जाता है। यह सॉल्यूशन एक डीकलराइजिंग एजेंट है, जो कुछ बैक्टीरिया की प्रजातियों की कोशिकाओं से प्राथमिक रंग को हटा देता है, लेकिन अन्य प्रजातियों कोशिकाओं से नहीं हटाता।

  • एथिल अल्कोहल (95%) डालें और 15-30 सेकंड तक इंतजार करें। फिर स्लाइड को हल्के पानी की धार से धोएं।

४. काउंटरस्टेन सफरानिन से रंगना (Counterstaining With Safranin )

डीकलराइजेशन के तुरंत बाद स्लाइड को धोकर, फिर इसे काउंटरस्टेन (जैसे बेसिक फुचसिन या सफरानिन) से स्टेन किया जाता है।
स्मीयर पर सफरानिन (Safranin) डालें और 1 मिनट तक इंतजार करें। फिर स्लाइड को हल्के पानी से धोएं।

सूक्ष्मदर्शी परीक्षण (Microscopic Examination):

अब स्लाईड को सुखने के बाद ड्राई किया जाता है अब स्लाइड को 100X ऑब्जेक्टिव ऑयल इमर्शन लेंस के साथ माइक्रोस्कोप में देखा जाता है। ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया बैंगनी (PURPLE) रंग के होते हैं, जबकि ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया गुलाबी रंग के दिखते हैं।

Gram staining in hindi


ग्राम स्टेनिंग सिद्धांत (Gram Staining Principle in Hindi)

इस प्रक्रिया में बैक्टीरिया के स्मियर पर पहले प्राइमरी स्टेन क्रिस्टल वायलेट (Crystal Violet) डाला जाता है। इसके बाद आयोडीन (Iodine) डाला जाता है जो मोर्डेंट के रूप में काम करता है, जो क्रिस्टल वायलेट को सेल वॉल के साथ स्थायी रूप से फिक्स करता है। इसके बाद जब से अल्कोहोल से स्मियर को डीकलराईज किया जाता है तब दो चीजे होती है

१) कूछ बैक्टीरिया के सेल वॉलसे में से प्रायमरी स्टेन क्रिस्टल वायलेट (Crystal Violet) बाहर निकल आता है और आसानी से धूल जाता है|

२) कूछ बैक्टीरिया के सेलवाल में फसा हुआ यह प्रायमरी स्टेन क्रिस्टल वायलेट (Crystal Violet)  अल्कोहोल से ट्रीटमेंट के बावजूद भी सेलवाल मे से बाहर नही निकल पाता।

क्रिस्टल वायलेट (Crystal Violet) बैक्टीरिया के सेल वॉल में फंस के रहेगा, या बाहर निकल आयेगा यह बैक्टीरिया के सेल वॉल की संरचना में भौतिक और रासायनिक अंतर पर निर्भर करता है| कुछ बैक्टीरिया की सेल वॉल में पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) की परत मोटी और जटिल होती है, जबकि कुछ बैक्टीरिया की सेल वॉल में यह पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) की परत पतली होती है।

मोटी और जटिल पेप्टिडोग्लाइकन कि परत वाले बैक्टीरिया के सेल वॉल में क्रिस्टल वायलेट और आयोडीन का कॉम्प्लेक्स (CV-I) फंस जाता है। अल्कोहोल ट्रीटमेंट के दौरान, इन बैक्टीरिया की सेल वॉल से पानी निकलने पर यह परत सिकुड़ जाती है, जिससे उसकी छिद्रता (porosity) कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, CV-I कॉम्प्लेक्स सेल वॉल से बाहर नहीं निकल पाता और ये बैक्टीरिया डीकलराइज नहीं होते। इसलिये ये बैक्टीरिया क्रिस्टल वायलेट (Crystal Violet) को बनाये रखते है और बैंगनी (Purple पर्पल) रंग में दिखाई देते हैं।

Gram Positive Bacteria ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया

ऐसे बैक्टीरिया जिनकी की सेल वॉल में प्राइमरी स्टेन क्रिस्टल वायलेट अटक जाता है और अल्कोहोल से डीकलराइज करने के बाद भी बाहर नहीं निकलता, वह बैंगनी या पर्पल रंग धारण कर लेते है । ऐसे बैक्टीरिया को ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया कहा जाता है।

इसके विपरीत कूछ बैक्टीरिया की सेल वॉल में पेप्टिडोग्लाइकन (Peptidoglycan) की परत पतली होती है। इस पतली पेप्टिडोग्लाइकन परत के साथ बाहरी लिपोपॉलीसैकेराइड (LPS) परत होती है। अल्कोहोल ट्रीटमेंट के दौरान, लिपिड परत घुल जाती है, जिससे सेल वॉल अधिक छिद्रपूर्ण (Porus) हो जाती है। इसके कारण क्रिस्टल वायलेट-आयोडीन कॉम्प्लेक्स (CV-I) सेल वॉल से बाहर निकल जाता है और बैक्टीरिया डीकलराइज हो जाते हैं। जब इन बैक्टीरिया को काउंटरस्टेन (सफरानिन Safranin या बेसिक फुचसिन Basic Fuchsin ) से रंगा जाता है, तो वे काउंटरस्टेन का लाल-गुलाबी (Pink) रंग धारण कर लेते हैं।

Gram Negative Bacteria ग्राम नेगेटिव बॅक्टेरिया

ऐसे बैक्टीरिया जिनकी सेल वॉल से प्राइमरी डाई क्रिस्टल वायलेट (Crystal Violet) अल्कोहोल से डीकलराइज (decolorize) हो जाती है, अगले स्टेप में जब उन्हें सफरानिन जैसी काउंटरस्टेन से रंगा जाता है, तो उनकी सेल वॉल सफरानिन का रंग ले लेती है और लाल- रंग में दिखाई देती है। ऐसे बॅक्टेरिया को ग्राम नेगेटिव बॅक्टेरिया कहते है।

ग्राम स्टेनिंग का महत्व Importance of Gram Staining in Hindi

सदी पुरानी ग्राम स्टेनिंग विधि आज भी बैक्टीरिया के वर्गीकरण और पहचान का आधार है। आज की जटिल और महंगी चिकित्सा तकनीकों के बावजूद, ग्राम स्टेनिंग रोगजनकों (pathogens)की पहचान में एक महत्वपूर्ण, सस्ता और अपराजेय (unbeatable) माध्यम है।

सदी पुरानी तकनीक: ग्राम स्टेनिंग एक ऐसी तकनीक है जो सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है।

सर्वव्यापी उपयोग: बैक्टीरिया की पहचान और वर्गीकरण के लिए दुनिया भर में इस तकनीक का इस्तेमाल होता है। यह बैक्टीरिया को दो मुख्य समूहों में बांटता है, जिससे उनके गुणों को समझने में मदद मिलती है।

सस्ती और प्रभावी: आज की महंगी तकनीकों के बावजूद, ग्राम स्टेनिंग एक सस्ता और असरदार तरीका है।

रोगाणुओं की पहचान: इस तकनीक से रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया की पहचान की जा सकती है।

तत्काल उपचार: मरीजों को तुरंत इलाज देने के लिए, इस तकनीक से सही एंटीबायोटिक का चुनाव किया जा सकता है।

ग्राम प्रकृति के सामान्य रोगजनक बैक्टीरिया Gram Nature of Common Pathogenic Bacteria

Gram Nature of Common Pathogenic Bacteria

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