मूंगफली में टिक्का रोग के लक्षण, कारण और रोग चक्र, Tikka Disease of Groundnut in Hindi, Tikka Disease Kya hota Hai, मूंगफली का टिक्का रोग Tikka Disease
मूंगफली एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जिसे दुनिया भर में उगाया जाता है। तिलहन फ़सलें वे फ़सलें होती हैं जिनसे वनस्पति तेल निकाला जाता है। यह न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है बल्कि पोषण के लिए भी बहुत मूल्यवान है। लेकिन मूंगफली की फसल को कई पत्तों से जुड़ी बीमारियों (फोलिएर डिजीज) से नुकसान होता है, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और पैदावार कम हो जाती है। इनमें से एक मुख्य बीमारी टिक्का रोग है, जो दो प्रकार की फफूंद(Fungus) से फैलती है – Cercospora arachidicola और Cercosporidium personatum (या Cercospora personata)। यह बीमारी मूंगफली के पत्तों पर गहरे धब्बे बना देती है, जिससे पत्ते जल्दी झड़ जाते हैं और उत्पादन में भारी गिरावट आती है। टिक्का रोग पूरी दुनिया में मूंगफली किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसे नियंत्रण में रखने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने जरूरी हैं।
Tikka Disease Types in hindi मूंगफली में टिक्का रोग के प्रकार
मूंगफली की फसल में टिक्का रोग के दो मुख्य प्रकार होते हैं – अर्ली लीफ स्पॉट (प्रारंभिक पत्ती धब्बा) और लेट लीफ स्पॉट (देर से पत्ती धब्बा)। अर्ली लीफ स्पॉट Cercospora arachidicola नामक फफूंद के कारण होता है, जबकि लेट लीफ स्पॉट Phaeoisariopsis personata (या Cercosporidium personatum) फफूंद से फैलता है। दोनों ही रोग पत्तों पर धब्बे बनाते हैं, जिससे पत्तियां झड़ने लगती हैं और पैदावार में भारी कमी आती है। इन दोनों बीमारियों को मिलाकर टिक्का रोग कहा जाता है।
Early Leaf Spot – ELS अर्ली लीफ स्पॉट
रोग का कारण: Cercospora arachidicola फफूंद
लक्षण: यह बीमारी जल्दी दिखने लगती है, आमतौर पर फसल उगने के 10-18 दिन बाद।
पहले पत्तों की ऊपरी सतह पर हल्के पीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में गहरे पीले रंग के होकर सड़ने लगते हैं।
धब्बे गोल या अनियमित आकार के होते हैं, जिनका आकार 1–10 मिमी तक हो सकता है।
परिपक्व होने पर धब्बे पत्तों की ऊपरी सतह पर गहरे लाल-भूरे से काले रंग के और निचली सतह पर नारंगी रंग के हो जाते हैं।
इस बीमारी में फफूंद के बीजाणु (स्पोर) पत्तों की ऊपरी सतह पर बनते हैं।
Late Leaf Spot – LLS लेट लीफ स्पॉट
रोग का कारण: Phaeoisariopsis personata (या Cercosporidium personatum) फफूंद
लक्षण:
यह बीमारी देर से दिखती है, आमतौर पर फसल उगने के 28–35 दिन बाद या कटाई के समय।
शुरुआत में पत्तों पर छोटे, मृत ऊतक जैसे धब्बे बनते हैं, जो बाद में गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं।
धब्बे गोल और 1.5–6.0 मिमी तक के होते हैं और इनका चारों ओर पीला घेरा (हेलो) नहीं होता।
इस बीमारी में फफूंद के बीजाणु (स्पोर) मुख्य रूप से पत्तों की निचली सतह पर बनते हैं।
Symptoms of Tikka Disease in hindi टिक्का रोग के लक्षण
टिक्का रोग के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
पत्तों पर छोटे, गोल, गहरे भूरे या काले धब्बे बनना।
अर्ली लीफ स्पॉट (Early Leaf Spot) में धब्बों के चारों ओर पीला घेरा (Yellow Halo) दिखाई देना।
धब्बे आपस में मिलकर बड़े पैच बना लेते हैं, जिससे पत्ते पीले होकर गिरने लगते हैं।
गंभीर संक्रमण में तनों (Stems) और फली (Pods) पर काले धब्बे (Black Lesions) पड़ सकते हैं।
पत्तों के जल्दी झड़ने (Premature Leaf Drop) के कारण प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कम होता है और उत्पादन घट जाता है।
Pathogen of Tikka Disease in hindi टिक्का रोग के कारक:
टिक्का रोग दो प्रकार की फफूंद (Fungal Pathogens) के कारण होता है:
- Cercospora arachidicola – यह Early Leaf Spot का कारण बनती है और इसके बीजाणु (Spores) पत्तों की ऊपरी सतह पर बनते हैं।
- Cercosporidium personatum – यह Late Leaf Spot का कारण बनती है और इसके बीजाणु पत्तों की निचली सतह पर बनते हैं।
दोनों फफूंद मिट्टी और संक्रमित पौधों के अवशेष (Plant Debris & Soil) में लंबे समय तक जीवित रह सकती हैं और हवा (Wind) व बारिश (Rain) के जरिए फैलती हैं।
Tikka Disease Cycle in hindi टिक्का रोग जीवन चक्र
टिक्का रोग निम्नलिखित चरणों में फैलता है:
- फफूंद संक्रमित पौधों के अवशेष और मिट्टी में जीवित रहती है।
- हवा (Wind) और बारिश (Rain) के जरिए बीजाणु स्वस्थ पौधों तक पहुंचते हैं।
- 25-30°C के गर्म तापमान और अधिक नमी (High Humidity) में फफूंद तेजी से बढ़ती है।
- फूल आने (Flowering) और फली बनने (Pod Formation) के समय यह रोग तेजी से फैलता है और गंभीर नुकसान करता है।
Control Measures and Management रोकथाम के उपाय
- सही फसल चक्र: संक्रमित पौधों के अवशेषों को हटाना और फसल चक्र का पालन करना।
- सिंचाई का प्रबंधन: पत्तियों को गीला रखने से बचें, विशेषकर बारिश के दिनों में।
- रासायनिक उपचार: उचित फफूंदनाशकों का उपयोग करें।
- सफाई: खेतों में सफाई रखें और संक्रमित पौधों को हटाएं।
- सही किस्में: टिक्का रोग के प्रति प्रतिरोधी मूंगफली की किस्मों का चयन करें।
निष्कर्ष:
टिक्का रोग मूंगफली की फसल के लिए एक गंभीर खतरा है, जिससे पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है। इसे नियंत्रित करने के लिए समय पर पहचान और सही उपाय अपनाना जरूरी है।
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